पिचानोत वंश की उत्पत्ति
इस गौरवशाली पिचानोत वंश का मूल आरंभ आमेर महाराज पृथ्वीराज कछवाहा के पुत्र राजा पाचयण सिंह कछवाहा से होता है। पाचयण सिंह का जन्म बीकानेर नरेश राव लूनकरण सिंह की पुत्री अपूर्वा कँवर (बाला बाई) के गर्भ से हुआ था।
इन्हीं पाचयण सिंह के वंशजों को आगे चलकर पिचानोत कछवाहा के नाम से पहचाना गया।
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पिचानोत कछवाहा क्षत्रिय वंश की यह विरासत केवल इतिहास नहीं, बल्कि एक जीवंत उदाहरण है – धर्म की रक्षा, राष्ट्र की रक्षा, और वीरता के सर्वोच्च आदर्शों का। इनका त्याग और बलिदान आज भी समाज को प्रेरणा देता है।

**वीरता की अमर गाथा: ठाकुर सुजान सिंह पिचानोत और गोनेर का युद्ध**
📜 **पृष्ठभूमि: मुगल आक्रांताओं का अत्याचार**
मुगल सम्राट औरंगज़ेब के शासनकाल में सम्पूर्ण भारतवर्ष में हिन्दू मंदिरों को निशाना बनाकर उन्हें ध्वस्त किया जा रहा था। 60 से अधिक मंदिर तोड़े गए, लेकिन अधिकांश स्थानों पर कोई प्रतिरोध नहीं हुआ।
परंतु एक ऐसा स्थान भी था, जहाँ धर्म की रक्षा के लिए आत्मबलिदान की मिसाल कायम की गई — वह था *पिचानोत जागीर गोनेर*, जयपुर।
⚔️ **युद्ध की चिंगारी: गोनेर पर हमला**
14 मई 1681 को औरंगज़ेब स्वयं एक विशाल मुगल सेना लेकर पिचानोत जागीर के **श्री जगदीश लक्ष्मी मंदिर, गोनेर** को ध्वस्त करने आया। सूचना जब *पिचानोत वंशीय राजपूतों* तक पहुँची, तो यह पूरे बारह कोटड़ी क्षेत्र में आग की तरह फैल गई। **नायला, सामरिया, और अन्य पिचानोत जागीरों** से सभी राजपूत योद्धा एकत्रित हो गए।
🛡️ **वीर योद्धा: ठाकुर सुजान सिंह पिचानोत**
पिचानोत जागीर के ठाकुर साहब **सुजान सिंह पिचानोत** ने इस संकट की घड़ी में नेतृत्व संभाला और समस्त पिचानोत राजपूतों के साथ मंदिर की रक्षा हेतु रणभूमि में उतर पड़े।
जैसे ही मुगल सेना ने गोनेर पर आक्रमण किया, पिचानोत राजपूतों ने *भूखे शेरों की तरह* मुगलों पर धावा बोला और **3000 से अधिक मुगलों का वध** कर दिया।
⚰️ **बलिदान: वीरगति का अमर प्रसंग**
युद्ध के दौरान ठाकुर सुजान सिंह का सिर मंदिर से लगभग 1 किलोमीटर दक्षिण में कटकर गिरा, लेकिन उनका *धड़ युद्ध करते हुए* मुगलों को पीछे धकेलते हुए, गोनेर से 1 किलोमीटर उत्तर दिशा में स्थित **तालाब की पाल** तक पहुँच गया, जहाँ उन्होंने वीरगति प्राप्त की। **उन्होंने अकेले 300 मुगलों का सिर धड़ से अलग किया।**
🙏 **धरोहर: मंदिर और स्मारक**
* ठाकुर साहब के बलिदान के उपरांत गोनेर का **श्री जगदीश लक्ष्मी मंदिर** सुरक्षित रहा और आज भी गौरव से खड़ा है।
* यह मंदिर, *पिचानोत जागीर सामरिया* में स्थित **सीताराम जी मंदिर** की तर्ज पर बनवाया गया था — आज भी दोनों मंदिरों की वास्तुशिल्प एक जैसी दिखाई देती है।
* गोनेर के तालाब की पाल पर *ठाकुर सुजान सिंह पिचानोत की विशाल छतरी* बनी हुई है, जहाँ उनकी *भौमिया जी महाराज* के रूप में पूजा होती है।
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जयपुर नरेश महाराजा जय सिंह प्रथम ने 1635 में सांभरियाँ और सहर से पांच भाइयों को 40 घोड़े की संयुक्त जागीर देकर नए ठिकानों की स्थापना की:
ठिकाना ढिगावड़ा (14 घोड़े की जागीर)
ठिकाना कैरवाड़ा (12 घोड़े की जागीर) – ठाकुर शिशराम सिंह पिचानोत
ठिकाना खेड़ली पिचानोत (08 घोड़े की जागीर)
ठिकाना रूपवास (4.25 घोड़े की जागीर)
ठिकाना धोलापलाश (1.75 घोड़े की जागीर)
इनमें से ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत और ठाकुर साहब छीतर सिंह पिचानोत भी युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए और भौमिया जी के रूप में पूजनीय हुए।
🏹 **गौरवपूर्ण निष्कर्ष**
यह युद्ध इतिहास का *एकमात्र ऐसा उदाहरण* है जिसमें मुगल सम्राट औरंगज़ेब को पराजय का सामना करना पड़ा और वह भी *धर्म की रक्षा* के लिए लड़ने वाले **पिचानोत राजपूत योद्धाओं** से।
**"जिन्होंने मंदिर नहीं, परंपरा बचाई — वह थे ठाकुर सुजान सिंह पिचानोत और उनके रणबांकुरे"**